भैरव बाबा
(BOTH IN HINDI & ENGLISH)
भैरव बाबा
भैरव का अर्थ है भक्तों का भय दूर करने वाला तथा दुष्टो को डराने वाला ,उनका नाश करने वाला । भैरव बाबा ऐसे देवता है जो बहुत जल्दी खुश हो जाते हैं तथा बहुत जल्दी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं इनकी पूजा में ज्यादा मेहनत की जरूरत नहीं है । श्रद्धा भाव से जो इनको पसंद है अगर हम चढ़ा दें तो निश्चित ही हमें मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। भैरव बाबा भगवान शिव के अंश हैं तथा समस्त सिद्धियों के ज्ञाता तथा प्रदान करने वाले देवता है।
भैरव बाबा लोक देवताओं , ग्राम देवता , कुल देवताओं के रूप में कहीं - कहीं कोतवाल के रूप में, कहीं रक्षक के रूप में विद्यमान रहते हैं। भैरव बाबा माताओं के विशेष प्रिय हैं। अगर हमें माता की विशेष कृपा चाहिए तो इन्हें अवश्य प्रसन्न करना चाहिए या इनकी पूजा करनी चाहिए। कलियुग में यह बाबा बहुत ही सक्रिय हैं इसीलिए कलियुग इनसे बहुत भयभीत रहता है। कुछ लोगों ने ऐसे देवताओं की छवि तांत्रिक देवता के रूप में स्थापित कर रखी है जबकि यह देवता सब प्रकार के सुख, आनंद, भक्ति, शक्ति, धन ,वैभव आदि प्रदान करने में पूरी तरह समर्थ है। इसलिए हमें इनसे भयभीत नहीं होना चाहिए तथा इनकी शरण में जाना चाहिए।
यह देवता बहुत ही पवित्र देवता है तथा इन्हें छल कपट एवं अपवित्रता बिल्कुल पसंद नहीं है। अगर कोई इनका या इनकी शक्तियों का गलत प्रयोग करता है तो उसका अनिष्ट जरूर होता है।
माता के जितने भी शक्तिपीठ हैं उन सभी स्थानों पर भैरव बाबा रक्षक के रूप में अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं । अतः ऐसे जागृत देवता की उपासना जरूर करनी चाहिए ।
भैरव को दंड पाणी भी कहते हैं अर्थात पापियों को दंड देने वाला। प्राचीन ग्रंथों में अष्ट भैरव बहुत ही प्रसिद्ध है । अष्ट भैरव बहुत ही शक्तिशाली देवता है । इनके द्वारा कोई भी काम असंभव नहीं है। कुछ प्राचीन ग्रंथों में इनके अलग-अलग नाम दिए गए हैं परंतु अष्ट भैरव के नाम से प्रसिद्ध है तथा इनकी पूजा होती है। कालभैरव इनका बहुत भयंकर तथा शक्तिशाली रूप है । भगवान शिव की नगरी काशी में कोतवाल के रूप में प्रसिद्ध है ।
भैरव बाबा के अनेकों रूपों में एक रूप है स्वर्णाकर्षण भैरव। यह देवता सोने की वर्षा कर सकते हैं या उसकी कमी को पूरा कर सकते हैं । हर प्रकार का सुख वैभव देने में समर्थ है। इस संबंध में एक बहुत ही दिलचस्प कथा प्राचीन ग्रंथों में देखने को मिलती है। श्री स्वर्णाकर्षण भैरव जी की चर्चा रूद्र यामल तन्त्र में शिव जी और नन्दी जी के बिच हुई थी।
एक बार की बात है कि कई वर्षो तक असुरों से लड़ते लड़ते देवताओं का खजाना खाली होने लगा । देवताओं में कुबेर देवता खजाने के देवता है परंतु उनका भंडार भी खाली होने लगा तथा माता लक्ष्मी भी कुछ करने में असमर्थ थी। यह सब देख कर कुबेर देवता बहुत घबरा गए । उस समय सभी देवी - देवता भगवान महादेव जी की शरण में गए । भगवान शिव ने भगवति के अविनाशी धाम श्री मणिद्वीप के कोषाध्यक्ष श्री स्वर्णाकर्षण भैरव की महिमा और उनके वैभव का वर्णन किया और उनकी शरण में जाने को कहा ।तब नंदी जी ने स्वर्णाकर्षण भैरव के बारे में उनको जानकारी दी तथा कहा की यह भैरव सदैव सोने से तथा अनेकों आभूषणों से सुसज्जित रहते हैं। इनकी उपासना करने से हर प्रकार की संपन्नता आ जाती है। इस प्रकार नंदी बाबा ने उन्हें स्वर्णाकर्षण भैरव की पूजा की विधि बताई तथा कहा कि इनकी उपासना करो।
फिर लक्ष्मी जी और कुबेर जी ने विशालातीर्थ (बद्रीविशाल धाम) में 3 हज़ार वर्षो तक सभी देवताओ सहित भीषण तप किया तब श्री मणिद्वीप धाम से प्रगट होकर भगवान स्वर्णाकर्षण भैरव ने उन्हें दर्शन दिए । स्वर्णाकर्षण भैरव ने उनके खजाने के भंडार अपनी चार भुजाओ से धन की वर्षा करके भर दिए । इस प्रकार कुबेर देवता तथा सभी देवी - देवता फिर से इनकी कृपा से धन वैभव से संपन्न हो सके।
नन्दी जी ने मनुष्यो की दरिद्रता नाश करने के लिये यह स्तोत्र महर्षि मार्कण्डेय जी को वर्णन किया था ।
अतः यह घटना हमें यह बताती है कि भैरव बाबा हमें कुछ भी देने में पूरी तरह से सक्षम है।
हमें जब भी किसी देवता की पूजा आराधना करनी होती है तो हमें उनसे संबंधित विधि विधान की जानकारी किसी योग्य व्यक्ति या गुरू से ले लेनी चाहिए तभी हम उस देवता को जल्दी प्रसन्न कर सकते हैं।
Bhairav Baba
Bhairav means to remove the fear of the devotees and to frighten the wicked, to destroy them. Bhairav Baba is such a deity who becomes happy very quickly and fulfills the desires very quickly, there is no need to work hard in his worship. If we offer what they like with reverence, then surely we get the desired fruit. Bhairav Baba is a part of Lord Shiva and full knowledgeer and impart deity of all siddhis.
Bhairav Baba resides in the form of folk deities, village deities, family deities, sometimes as a kotwal, somewhere as a protector. Bhairav Baba is a special favorite of mothers. If we want special blessings of mother, then we must worship them. This Baba is very active in Kal Yuga(present time). Kal Yuga is very afraid of him. Some people have established the image of such deities as tantric deities while this deity is fully capable of providing all kinds of pleasures, bliss, devotion, strength, health, wealth etc. Therefore, we should not be afraid of them and go to their shelter.
This deity is a very pious deity and does not like deceit and profanity at all. If someone misuses them or their powers, then it is definitely harmful.
Bhairav Baba is known by different names as protector in all the places of Shakti Peeth of Mata. Therefore, one must worship such an awakened deity.
Bhairav is also known as punish pani, meaning punisher of sinners. Ashta Bhairava is very famous in ancient texts. Ashta Bhairava is a very powerful deity. No work is impossible by them. They are given different names in some ancient texts, but Ashta is famous by the name of Bhairav and is worshiped. Kalabhairava has a very fierce and powerful form. The city of Lord Shiva is famous as Kotwal in Kashi.
In many forms of Bhairav Baba, there is a form of Swarnakarshan Bhairava. These gods can make gold rain or fill its deficiency or can give any type of wealth and comforts. A very interesting story in this regard is found in ancient texts. Discussion of Shri Swarnakarshan Bhairav ji was discussed between Shiva and Nandi in Rudra Yamal Tantra. It is available in book form.
Once upon a time, for many years, the treasury of the deities in fighting with the Asuras started to be empty. Among the deities, Kubera Devta is the god of treasures, but his stock also started getting empty and Goddess Lakshmi was also unable to do anything. Seeing all this, the God of Kubera got very nervous. At that time all the deities went to the shelter of Lord Mahadev. Lord Shiva described the glory and splendor of Shri Swarnakarshan Bhairav, the treasurer of Shri Manidweep, the imperishable abode of Bhagwati and asked him to go to his shelter. Then Nandi gave him information about Swarnakarshan Bhairav and said that this Bhairav is always with gold And are equipped with many ornaments. Worshiping them brings all kinds of prosperity. In this way, Nandi Baba told him the method of worshiping Swarnakarshan Bhairav and said that worship him.
Then Lakshmi ji and Kubera ji meditated in Vishalatirtha (Badrivishal Dham) for 3 thousand years along with all the deities and then appeared from Sri Manidweep Dham and Lord Swarnakarshan Bhairav appeared to them. Swarnakrishna Bhairava filled his treasury with the rains of gold and other with his four arms. In this way, Kubera Devta and all the Gods and Goddesses can again be blessed with wealth by their grace.
Nandi Ji had described this hymn to Maharishi Markandeya to destroy the poverty of humans.
So this incident tells us that Bhairav Baba is fully capable of giving us anything.
Whenever we have to worship, the worship of any deity, then we should take the information of the law related to them from a qualified person or teacher(Guru) only then we can get desire wishes from that deity quickly.
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1 |
ॐ भैरवाय नमः |
28 |
ॐ कङ्कालिने नमः |
55 |
ॐ बहुवेषाय नमः |
82 |
ॐ कङ्कालधारिणे नमः |
2 |
ॐ भूतनाथाय नमः |
29 |
ॐ धूम्रलोचनाय नमः |
56 |
ॐ खट्वाङ्गवरधारकाय नमः |
83 |
ॐ मुण्डिने नमः |
3 |
ॐ भूतात्मने नमः |
30 |
ॐ अभीरवे नमः |
57 |
ॐ भूताध्यक्षाय नमः |
84 |
ॐ नागयज्ञोपवीतकाय नमः |
4 |
ॐ भूतभावनाय नमः |
31 |
ॐ भैरवीनाथाय नमः |
58 |
ॐ पशुपतये नमः |
85 |
ॐ जृम्भणाय नमः |
5 |
ॐ क्षेत्रज्ञाय नमः |
32 |
ॐ भूतपाय नमः |
59 |
ॐ भिक्षुकाय नमः |
86 |
ॐ मोहनाय नमः |
6 |
ॐ क्षेत्रपालाय नमः |
33 |
ॐ योगिनीपतये नमः |
60 |
ॐ परिचारकाय नमः |
87 |
ॐ स्तम्भिने नमः |
7 |
ॐ क्षेत्रदाय नमः |
34 |
ॐ धनदाय नमः |
61 |
ॐ धूर्ताय नमः |
88 |
ॐ मारणाय नमः |
8 |
ॐ क्षत्रियाय नमः |
35 |
ॐ धनहारिणे नमः |
62 |
ॐ दिगम्बराय नमः |
89 |
ॐ क्षोभणाय नमः |
9 |
ॐ विराजे नमः |
36 |
ॐ धनवते नमः |
63 |
ॐ शौरिणे नमः |
90 |
ॐ शुद्धाय नमः |
10 |
ॐ श्मशानवासिने नमः |
37 |
ॐ प्रतिभानवते नमः |
64 |
ॐ हरिणाय नमः |
91 |
ॐ नीलाञ्जनप्रख्याय नमः |
11 |
ॐ मांसाशिने नमः |
38 |
ॐ नागहाराय नमः |
65 |
ॐ पाण्डुलोचनाय नमः |
92 |
ॐ दैत्यघ्ने नमः |
12 |
ॐ खर्पराशिने नमः |
39 |
ॐ नागकेशाय नमः |
66 |
ॐ प्रशान्ताय नमः |
93 |
ॐ मुण्डभूषिताय नमः |
13 |
ॐ स्मरान्तकाय नमः |
40 |
ॐ व्योमकेशाय नमः |
67 |
ॐ शान्तिदाय नमः |
94 |
ॐ बलिभुजे नमः |
14 |
ॐ रक्तपाय नमः |
41 |
ॐ कपालभृते नमः |
68 |
ॐ सिद्धाय नमः |
95 |
ॐ बलिभुङ्नाथाय नमः |
15 |
ॐ पानपाय नमः |
42 |
ॐ कालाय नमः |
69 |
ॐ शङ्करप्रियबान्धवाय नमः |
96 |
ॐ बालाय नमः |
16 |
ॐ सिद्धाय नमः |
43 |
ॐ कपालमालिने नमः |
70 |
ॐ अष्टमूर्तये नमः |
97 |
ॐ बालपराक्रमाय नमः |
17 |
ॐ सिद्धिदाय नमः |
44 |
ॐ कमनीयाय नमः |
71 |
ॐ निधीशाय नमः |
98 |
ॐ सर्वापत्तारणाय नमः |
18 |
ॐ सिद्धिसेविताय नमः |
45 |
ॐ कलानिधये नमः |
72 |
ॐ ज्ञानचक्षुषे नमः |
99 |
ॐ दुर्गाय नमः |
19 |
ॐ कङ्कालाय नमः |
46 |
ॐ त्रिलोचनाय नमः |
73 |
ॐ तपोमयाय नमः |
100 |
ॐ दुष्टभूतनिषेविताय नमः |
20 |
ॐ कालशमनाय नमः |
47 |
ॐ ज्वलन्नेत्राय नमः |
74 |
ॐ अष्टाधाराय नमः |
101 |
ॐ कामिने नमः |
21 |
ॐ कलाकाष्ठातनवे नमः |
48 |
ॐ त्रिशिखिने नमः |
75 |
ॐ षडाधाराय नमः |
102 |
ॐ कलानिधये नमः |
22 |
ॐ कवये नमः |
49 |
ॐ त्रिलोकपाय नमः |
76 |
ॐ सर्पयुक्ताय नमः |
103 |
ॐ कान्ताय नमः |
23 |
ॐ त्रिनेत्राय नमः |
50 |
ॐ त्रिनेत्रतनयाय नमः |
77 |
ॐ शिखीसख्ये नमः |
104 |
ॐ कामिनीवशकृद्वशिने नमः |
24 |
ॐ बहुनेत्राय नमः |
51 |
ॐ डिम्भाय नमः |
78 |
ॐ भूधराय नमः |
105 |
ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः |
25 |
ॐ पिङ्गललोचनाय नमः |
52 |
ॐ शान्ताय नमः |
79 |
ॐ भूधराधीशाय नमः |
106 |
ॐ वैद्याय नमः |
26 |
ॐ शूलपाणये नमः |
53 |
ॐ शान्तजनप्रियाय नमः |
80 |
ॐ भूपतये नमः |
107 |
ॐ प्रभवे नमः |
27 |
ॐ खड्गपाणये नमः |
54 |
ॐ बटुकाय नमः |
81 |
ॐ भूधरात्मजाय नमः |
108 |
ॐ विष्णवे नमः |